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मार्केट में एंट्री लेते समय अक्सर यह सवाल क्यों आता है? - 2
मार्केट में एंट्री लेते समय अक्सर यह सवाल क्यों आता है?
आपके दिमाग में हमेशा यह सवाल आता होगा कि जब भी आप मार्केट में एंट्री लेते हैं, तो क्या होता है? मार्केट टॉप पर होते हुए अगर आप खरीदते हैं तो मार्केट नीचे गिर जाती है, और अगर आप सेल करते हैं तो मार्केट ऊपर चली जाती है। ऐसा आपके साथ हमेशा क्यों होता है? क्या अगर मैं बॉटम पर एंट्री करता हूं, तो क्या मुझे उस समय भी नुकसान होगा?
मान लीजिए, मैं बॉटम पर एंट्री लेता हूं, तो अगर मैं यहां से एग्जिट करता हूं, तो मुझे 211 पॉइंट का टारगेट मिल सकता है। और यह सब 18 पॉइंट के स्टॉप लॉस के साथ। अब, 18 पॉइंट के स्टॉप लॉस में 211 पॉइंट का टारगेट — यह क्या है?
रणनीति और सोच
मैं जो भी कर रहा हूं, उसका तरीका, माइंडसेट, रिस्क मैनेजमेंट, और स्ट्रैटेजी, हर एक चीज़ मैं आपको इस ब्लॉग के जरिए शेयर करूंगा।
आज का टॉपिक बहुत ही दिलचस्प है, और इसकी वजह से आपको यह सीखने को मिलेगा कि ऑपरेटर की एंट्री कैसे होती है। बड़े प्लेयर जब मार्केट में एंटर करते हैं, तो आपको कैसे पता चलता है कि कोई बड़ा प्लेयर एंटर हो सकता है?
हमेशा आपके दिमाग में यह सवाल आता होगा कि मार्केट टॉप पर होते हुए, जब आप एंट्री लेते हैं, तो मार्केट क्यों रिवर्स हो जाती है। यह आपके साथ क्यों होता है? क्या आप बॉटम पर भी एंट्री लेते हैं तो क्या यही होगा? क्या मार्केट यहां से रिवर्स करेगी या नहीं? कैसे हमें पता चलेगा कि जो ट्रेंड चल रहा है वह स्ट्रॉन्ग है या वीक?
आज के ब्लॉग में मैं आपको यह सब क्लियर करूंगा। इस ब्लॉग को पढ़ने के बाद, आप यह जान जाएंगे कि ऑपरेटर के एंट्री पॉइंट्स कैसे काम करते हैं, और आप मार्केट के ट्रेंड को कैसे पहचान सकते हैं।
वॉल्यूम और प्राइस एक्शन: मार्केट के दो महत्वपूर्ण तत्व
अब, आइए बात करते हैं वॉल्यूम और प्राइस एक्शन के बारे में। मैंने अपने पिछले ब्लॉग में बताया था कि मार्केट केवल दो चीज़ों पर काम करती है - प्राइस और वॉल्यूम। प्राइस एक्शन के बारे में तो आप पहले से जानते हैं, अब हम वॉल्यूम को समझेंगे।
वॉल्यूम क्या है? मार्केट में दो पार्टियां होती हैं: बायर और सेलर। इन दोनों के बीच जो ट्रेडिंग होती है, वह वॉल्यूम कहलाती है। यदि बायर्स की वॉल्यूम ज्यादा होती है, तो मार्केट ऊपर जाती है। अगर सेलर्स की वॉल्यूम ज्यादा होती है, तो मार्केट नीचे गिरती है।
वॉल्यूम और प्राइस दोनों का साथ होना बहुत जरूरी है। जब भी वॉल्यूम के साथ प्राइस की कैंडल बनती है, तो हमें पता चलता है कि कहीं न कहीं बड़े प्लेयर एंटर हो रहे हैं। जब वॉल्यूम बढ़ता है, तो यह हमें बताता है कि क्या ट्रेंड वाकई में स्ट्रॉन्ग है या नहीं।
आज के ब्लॉग में हम यह देखेंगे कि वॉल्यूम का इस्तेमाल करके हम मार्केट का ट्रेंड कैसे प्रेडिक्ट कर सकते हैं, रिवर्सल और ब्रेकआउट को पहचान सकते हैं, और एंट्री और एग्जिट पॉइंट्स को कैसे बेहतर तरीके से समझ सकते हैं।
आखिरकार, वॉल्यूम और प्राइस दोनों का सही उपयोग करना ट्रेडिंग में सफलता की कुंजी है। इसलिए इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ें, और मैं आपको यकीन दिलाता हूं कि आपको कई नए टूल्स और टेक्निक्स मिलेंगी, जो आपकी ट्रेडिंग को बेहतर बनाएंगी।
मार्केट में चार सिनेरियो
मार्केट के अंदर चार सिनेरियो होते हैं, और इन चार सिनेरियो के बाद आपको यह समझ आ जाएगा कि आपको कैसे पता लगेगा कि कौन सा ट्रेंड असल में स्ट्रॉन्ग है या फिर वीक है, जो जबरदस्ती लेकर जाया जा रहा है। ये आज के एक्जांपल के साथ आपको समझाऊंगा, जो आज मार्केट के अंदर हुआ। बड़ी जो कैंडल्स बन रही थीं, ठीक है? मार्केट को ऊपर लेकर गया जबरदस्ती। वो सारी चीजें आज मैं लाइव आपको दिखाता हूं कि कैसे हम फाइंड आउट कर सकते हैं।
तो मार्केट के अंदर चार सिनेरियो हो सकते हैं:
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प्राइस बढ़ रहा है, लेकिन वॉल्यूम सेलिंग साइड की बढ़ रही है
ऐसा हो सकता है कि प्राइस बढ़ रहा है लगातार, प्राइस ऊपर जा रहा है, लेकिन वॉल्यूम हमारी सेलिंग साइड की बढ़ रही है। तो वहां पर हम समझ सकते हैं कि सेलिंग वॉल्यूम ज्यादा है। -
प्राइस घट रहा है, लेकिन वॉल्यूम बाइंग साइड की बढ़ रही है
दूसरा क्या हो सकता है? प्राइस घट रहा है, मार्केट नीचे जा रही है, लेकिन वॉल्यूम बाइंग साइड की बढ़ रही है। तो प्राइस नीचे जा रहा है, लेकिन वॉल्यूम बाइंग साइड की बढ़ रही है। तो यहां पर भी प्राइस और वॉल्यूम साथ में नहीं हैं। मैंने बोला ना, ये जिगरी दोस्त हैं। अगर ये साथ में नहीं रहेंगे तो हमें दिक्कत होगी। -
प्राइस और वॉल्यूम दोनों बढ़ रहे हैं
अब जो तीसरा और चौथा पॉइंट है, वो बहुत इंपॉर्टेंट है, क्योंकि उसी के अंदर सारी चीजें छुपी हुई हैं।-
अगर प्राइस बढ़ रहा है और वॉल्यूम भी बढ़ रही है, यानी कि प्राइस ऊपर जा रहा है और वॉल्यूम बाइंग साइड की बढ़ रही है, तो इसका मतलब ये है कि बाइंग वॉल्यूम स्ट्रॉन्ग है और मार्केट का अप ट्रेंड बहुत स्ट्रॉन्ग है। यहां पर मार्केट नीचे नहीं आने वाली, वो ऊपर ही जाएगी।
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प्राइस घट रहा है और वॉल्यूम भी बढ़ रहा है
और जो लास्ट पॉइंट है, वो है प्राइस जब नीचे गिर रहा है, मार्केट काफी टाइम से नीचे गिर रही है, और वहां पर वॉल्यूम सेलिंग साइड की बढ़ रही है। तो प्राइस नीचे आ रहा है, वॉल्यूम भी सेलिंग साइड की बढ़ रही है, यानी कि सेलर्स ज्यादा हैं। तो इसका मतलब ये है कि प्राइस और वॉल्यूम साथ में हैं और मार्केट में सेलिंग साइड का ट्रेंड बहुत स्ट्रॉन्ग है। अब रिवर्सल नहीं आने वाला, आराम से बैठो और फॉल को एंजॉय करो, और फिर आराम से प्रॉफिट बुक करो।
लाइव उदाहरण
अब, लाइव एक्जांपल से देखाते हैं कि क्या हुआ। यहां पर, देखो, मार्केट को जबरदस्ती ऊपर ले जाया गया। क्यों? पहली कैंडल में ही, वॉल्यूम दिखाई दे रही है। 9 अक्टूबर की तारीख है, मैंने शुरुआत में 10 अक्टूबर बोला था, लेकिन यह 9 अक्टूबर है। तो, यहां पर, हमें देखना है कि पहली कैंडल में वॉल्यूम कितनी थी। ग्रीन कैंडल दिख रही है, लेकिन वॉल्यूम सेलिंग साइड की बढ़ रही है।
अगर हम वॉल्यूम इंडिकेटर की बात करें, तो वह हमें नंबर के रूप में वॉल्यूम दिखाता है। पहली कैंडल में ही वॉल्यूम सेलिंग साइड की बढ़ रही है, और मार्केट को जबरदस्ती ऊपर ले जाया जा रहा है। यही तरीका हमें दिखाता है कि ट्रेंड मजबूत नहीं है। जब भी मार्केट को जबरदस्ती ऊपर खींचा जाता है, तो वो वापस गिरती है।
और फिर हमने देखा कि सेलिंग वॉल्यूम बढ़ती जा रही थी, और मार्केट नीचे गिरने लगी थी।
निष्कर्ष: मार्केट को समझने और सही एंट्री/एग्जिट पॉइंट्स को पहचानने के लिए वॉल्यूम और प्राइस एक्शन का सही उपयोग करना बेहद जरूरी है। जब आप इन दोनों के बीच तालमेल समझ पाएंगे, तो मार्केट के ट्रेंड और रिवर्सल को बेहतर तरीके से प्रेडिक्ट कर सकते हैं और सफल ट्रेडिंग कर सकते हैं।
आशा है कि यह ब्लॉग आपके ट्रेडिंग ज्ञान को और भी मजबूत करेगा।
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